बुंदेलखंड में लॉक डाउन और मजदूर पार्ट 3 ………रोटी है अनमोल………?…(डॉ नरेन्द्र अरजरिया 9425304474…) वातानुकूलित कमरों में बैठे और कारों में घूमने वाले लोगों को यह बात बड़ी अजीब सी लगती होगी की लॉक डाउन में रोटी कैसे अनमोल हो सकती है शासन प्रशासन इन तक सब कुछ पहुंचा रहा है हम टीवी और अखबार में भी यही पढ़ रहे हैं फिर ऐसी स्थिति कैसे हो सकती है लेकिन जनाब यह स्थिति उस बुंदेलखंड की है जहां महाकवि तुलसीदास से लेकर रानी लक्ष्मी बाई जैसी महा योद्धा ने जन्म लिया है लेकिन आजादी के 70 साल बाद जनता के नुमाइंदों की शोषण नीति ने बुंदेलखंड में दो तरह की समाज पैदा कर दी है एक शोषक दूसरी शोषित ।यही वजह है कि आज लॉक डाउन में मजदूरों के पास काम नहीं है और उनके ठेकेदार मजदूरों को उन्हीं के हालात पर छोड़ कर के लापता हो गए हैं हम आपको रूबरू कराते हैं बुंदेलखंड के जनपद कर्वी में खनिज मजदूरों के हालात से लॉक डाउन की 25 दिन में न तो उनके के पास राशन बचा है ना ही वो ठेकेदार मिल रहा है जो उनको मजदूरी करने यहां लाया था अब ऐसे में वह जाएं तो जाएं कहां इस बस्ती में अब बचपन भूख से तड़पता नजर आ रहा है जिन बच्चों की मां नहीं है सिर्फ पिता है उसके पास काम नहीं है और बच्चों को खाने के लाले पड़े हैं पिता के पास काम नहीं है तो 15 साल की बेटी अपनी ही मजदूर बस्ती में अपने दो छोटे भाइयों के लिए रोटियों के टुकड़े मांग कर लाते हैं इस मासूम की हालत देखकर लगता है की सरकार और जनता के नुमाइंदे ने शायद दूसरे दर्जे का नागरिक मानती हो ?इस क्षेत्र में सामाजिक कार्य कर रहे…………… अभिमन्यु भाई का कहना है कि लॉक डाउन में हम लगातार इन मज़दूर बस्तियों में जाकर के लोगों की समस्याएं सुन रहे हैं और जिला प्रशासन से बार-बार आग्रह कर रहे हैं हमारे प्रयास से ही जिला प्रशासन ने कुछ जगह राशन भी पहुंचाया है लेकिन इन बस्तियों में मजदूरों की हालत चिंताजनक है ।( समाजसेवी अभिमन्यु भाई की एफबी से साभार) मुझे मजदूर के इन मासूमों के हालात पर सायरा कुरैशी की 4 लाइनें याद आती हैं ।…………………………मेरे देश की क्या ये पहचान नहीं है?
यूँ मत रोंदो बचपन इनका…
जीवन है जीवन… आसन नहीं है
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